Saturday, 31 August 2013
Monday, 26 August 2013
Friday, 16 August 2013
रामबन से किश्तवाड तक साजिशों का सफ़र
वीरेन्द्र सिंह चौहान
जम्मू-कश्मीर में भारत विरोधी तत्व कितनी चतुराई से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं, इसके दो प्रमाण बीते एक माह के दौरान सतह पर आए हैं। दोनों ही मामलों में राज्य में तिरंगा थाम कर भारत माता की जय बोलने वालों को मात मिली है। पहली घटना रामबन में सीमा सुरक्षा बल को बदनाम करने की साजिश में अलगाववादियों की कामयाबी के रूप में देखने को मिली थी। अब दूसरी घटना बीते शुक्रवार को ईद की नमाज के बाद किश्तवाड़ में एक समुदाय के लोगों और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाए जाने की है। इन दोनों ही मामलों में पाक-परस्तों के निशाने पर वह लोग हैं जिनके कारण जम्मू -कश्मीर भारत के साथ जुड़ा हुआ है।
हमारा अभिप्राय भारतीय सुरक्षा बलों और राज्य के देशभक्त नागरिकों से है। कौन नहीं जानता कि यह दोनों पक्ष पाकिस्तान-पालित आतंकियों और दूसरे अलगाववादियों को फूटी आंख नहीं सुहाते। इसलिए सरहद के उस पार भी और इस पार भी निरंतर इस बात के प्रयास चलते रहते हैं कि इनके मनोबल पर किसी न किसी रूप में कुठाराघात जारी रहे। मनोबल तोडऩे की साजिशें पाक-परस्तों द्वारा इतनी बारीकी से रची जाती हैं कि उसका हिस्सा बनने वाले आम लोगों को भी संभवत: इसकी भनक न लगती हो। और अनेक बार तो यूं लगने लगता है कि राज्य सरकार भी कहीं न कहीं इन देश-विरोधी तत्वों की ही मौन हिमायती है। किश्तवाड़ की घटना के दिन राज्य के गृहमंत्री किचलू का डाक-बंगले में मौजूद रहना, पुलिस का बहुत देरी से हरकत में आना और सेना की सहायता सब-कुछ लुट-पिट जाने के बाद लिया जाना महज संयोग नहीं हो सकता।
जम्मू-कश्मीर में भारत विरोधी तत्व कितनी चतुराई से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं, इसके दो प्रमाण बीते एक माह के दौरान सतह पर आए हैं। दोनों ही मामलों में राज्य में तिरंगा थाम कर भारत माता की जय बोलने वालों को मात मिली है। पहली घटना रामबन में सीमा सुरक्षा बल को बदनाम करने की साजिश में अलगाववादियों की कामयाबी के रूप में देखने को मिली थी। अब दूसरी घटना बीते शुक्रवार को ईद की नमाज के बाद किश्तवाड़ में एक समुदाय के लोगों और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाए जाने की है। इन दोनों ही मामलों में पाक-परस्तों के निशाने पर वह लोग हैं जिनके कारण जम्मू -कश्मीर भारत के साथ जुड़ा हुआ है।
हमारा अभिप्राय भारतीय सुरक्षा बलों और राज्य के देशभक्त नागरिकों से है। कौन नहीं जानता कि यह दोनों पक्ष पाकिस्तान-पालित आतंकियों और दूसरे अलगाववादियों को फूटी आंख नहीं सुहाते। इसलिए सरहद के उस पार भी और इस पार भी निरंतर इस बात के प्रयास चलते रहते हैं कि इनके मनोबल पर किसी न किसी रूप में कुठाराघात जारी रहे। मनोबल तोडऩे की साजिशें पाक-परस्तों द्वारा इतनी बारीकी से रची जाती हैं कि उसका हिस्सा बनने वाले आम लोगों को भी संभवत: इसकी भनक न लगती हो। और अनेक बार तो यूं लगने लगता है कि राज्य सरकार भी कहीं न कहीं इन देश-विरोधी तत्वों की ही मौन हिमायती है। किश्तवाड़ की घटना के दिन राज्य के गृहमंत्री किचलू का डाक-बंगले में मौजूद रहना, पुलिस का बहुत देरी से हरकत में आना और सेना की सहायता सब-कुछ लुट-पिट जाने के बाद लिया जाना महज संयोग नहीं हो सकता।
कहां मिलेगी,राह दिखाए तो कोई?
जिसे देखिये बंधक और बेचारा है।
सच की खातिर लडऩा किसे गवारा है?
गिरवी है हर कलम, शब्द अरू छन्दे बिके।
इसी लिए मुख बन्द और सब शीश झुके।।
किस ने निज जीवन में इसे उतारा है।।
रिश्ते-नाते बनते हैं बाजारों में।
सिमट गया संसार कनक दीवारों में।।
मुक्ति का नव मंत्र सुझाए तो कोई।
आजादी के अर्थ बताए तो कोई।।
- वीरेन्द्र सिंह चौहान
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