वीरेन्द्र सिंह चौहान
जम्मू-कश्मीर में भारत विरोधी तत्व कितनी चतुराई से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं, इसके दो प्रमाण बीते एक माह के दौरान सतह पर आए हैं। दोनों ही मामलों में राज्य में तिरंगा थाम कर भारत माता की जय बोलने वालों को मात मिली है। पहली घटना रामबन में सीमा सुरक्षा बल को बदनाम करने की साजिश में अलगाववादियों की कामयाबी के रूप में देखने को मिली थी। अब दूसरी घटना बीते शुक्रवार को ईद की नमाज के बाद किश्तवाड़ में एक समुदाय के लोगों और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाए जाने की है। इन दोनों ही मामलों में पाक-परस्तों के निशाने पर वह लोग हैं जिनके कारण जम्मू -कश्मीर भारत के साथ जुड़ा हुआ है।
हमारा अभिप्राय भारतीय सुरक्षा बलों और राज्य के देशभक्त नागरिकों से है। कौन नहीं जानता कि यह दोनों पक्ष पाकिस्तान-पालित आतंकियों और दूसरे अलगाववादियों को फूटी आंख नहीं सुहाते। इसलिए सरहद के उस पार भी और इस पार भी निरंतर इस बात के प्रयास चलते रहते हैं कि इनके मनोबल पर किसी न किसी रूप में कुठाराघात जारी रहे। मनोबल तोडऩे की साजिशें पाक-परस्तों द्वारा इतनी बारीकी से रची जाती हैं कि उसका हिस्सा बनने वाले आम लोगों को भी संभवत: इसकी भनक न लगती हो। और अनेक बार तो यूं लगने लगता है कि राज्य सरकार भी कहीं न कहीं इन देश-विरोधी तत्वों की ही मौन हिमायती है। किश्तवाड़ की घटना के दिन राज्य के गृहमंत्री किचलू का डाक-बंगले में मौजूद रहना, पुलिस का बहुत देरी से हरकत में आना और सेना की सहायता सब-कुछ लुट-पिट जाने के बाद लिया जाना महज संयोग नहीं हो सकता।
रामबन में सीमा सुरक्षा बल को बदनाम करने के लिए एक ही समुदाय के दो पक्षों की एक धर्मस्थल को लेकर जारी पुरानी रंजिश का सुनियोजित ढंग से इस्तेमाल किया गया। यह तथ्य खुलकर सामने आने में क ई रोज लग गए। जब खुला भी तो नेशनल मीडिया देश के सामने उसकी विस्तृत तस्वीर पेश नहीं कर सका। रामबन में भारत विरोधी तत्वों का मकसद सीमा सुरक्षा बल को कटघरे में खड़ा करना था। उनकी क्रूर और अमानवीय तस्वीर पेश करने के लिए पहले हमेशा की तरह एक धर्मग्रंथ का निरादर होने की अफवाह उड़ाई गई। लोग सीमा सुरक्षा बल पर भड़क उठे।
तनाव के माहौल को संभालने की प्रक्रिया में पहली गोली कहां से चली और किस पर किसने चलाई, इसकी जानकारी सरकारी रिकार्ड में दर्ज है। राज्य पुलिस के एक इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी के बाद सच्चाई की वह तस्वीर सामने आई जो चीख चीख कर बताती है कि इस प्रकरण में सीमा सुरक्षा बल का दामन बिल्कुल साफ था। मगर राजनीतिक कारणों से रामबन से सीमा सुरक्षा बल की उसी टुकड़ी को अन्यत्र भेज दिया गया जिसे बदनाम करने के लिए साजिश रची गई थी। ऐसे में यही कहना पड़ेगा कि इस प्रक्रिया में वे जीत गए जो हमारे सुरक्षा बलों को लगातार गलत रंग में रंग कर दर्शाने को तड़पते रहते हैं।
अब ईद के रोज किश्तवाड़ में दो संप्रदाय आमने सामने खड़े नजर आए। ग्राउंड जीरो से छन छन कर आई जानकारी से साफ है कि पथराव, आगजनी और लूटपाट सुनियोजित थी। ईद की नमाज के पूर्व और बाद में भारत विरोधी और पाक-समर्थक नारे लगाए जाने की बात को कोई नकार नहीं रहा। जब एक समुदाय की देशघाती नारेबाजी करती भीड़ ने निशाना बनाया, उस समय मंत्री किचलू शहर के डाक बंगले में डेरा डाले हुए थे। किचलू की मौजूदगी और फसाद के दौरान उनकी भूमिका पर जम्मू की सड़कों से लेकर संसद तक में सवाल उठना स्वाभाविक था। संदेह के घेरे में आए किचलू का इस्तीफा दर्शाता है कि राज्य सरकार इस मामले में गलत पाले में खड़ी पकड़ी गई है।
रामबन और किश्तवाड़ में घटी घटनाओं की ईमानदारी से पड़ताल हो तो यह भी साफ हो जाएगा कि भारत विरोधी तत्वों ने जो किया वह अचानक या अनायास या किसी तात्कालिक उकसावे में नहीं किया। दरअसल,सारे घटनाचक्र के पीछे देशभक्त लोगों की कमर तोडऩे की सुनियोजित साजिश काम कर रही है। पहले एक समुदाय के लोगों का दूसरे समुदाय के लोगों की दूकानों व मकानों पर हमला बोला। उसके तुरंत बाद यह मांग होने लगी कि इलाके में विलेज डिफेंस कमेटियों को दिए गए शस्त्र वापस ले लिए जाएं।
हमें समझना होगा कि इन कमेटियों में कौन लोग शामिल हैं। जी हां, यह निस्संदेह वे लोग हैं जिन्हें आतंक के चरम के दौर में सरकार ने आतंकियों से आत्मरक्षा के लिए शस्त्र मुहैया कराए थे। आतंकियों से भय किसी अलगाववादी को नहीं था बल्कि उन लोगों को था जो भारत के साथ न केवल दिल से जुड़े हैं बल्कि मौत के साये में रह कर भी वहां तिरंगा थामे हुए हैं। देशविरोधी लोग इन्हें किसी भी कीमत पर निहत्था देखना चाहते हैं। इन्हें निहत्था करने की भूमिका बनाने के लिए किश्तवाड़ में कई प्रकार की अफ वाहें फैलाने का सिलसिला बीते एक पखवाड़े से जारी था। उसकी परिणति ईद के दिन भारतविरोधी नारेबाजी और फसाद के रूप में हुई।
दोनों ही घटनाओं में जो दिख रहा है, सच्चाई उतनी सीधी और सरल नहीं। दोनों का मकसद हमें तो साफ साफ भारत-प्रेमियों को कमजोर करना नजर आता है। रामबन में देशविरोधी तत्व सीमा सुरक्षा बल को बदनाम करके जीत गए और किश्तवाड़ में वे विलेज डिफेंस कमेटियों को बदनाम करके फतेह हासिल करना चाहते हैं। जो भारत से अलगाव के सपने के साथ जी रहे हैं, वे तो वही कर रहे हैं जो उन्हें अपने नापाक मकसद को हासिल करने के लिए करना उचित लगता है। मगर हमारी पीड़ा यह है कि सब कुछ जानते-समझते हुए भी राज्य सरकार कहीं अप्रत्यक्ष तो कहीं प्रत्यक्ष रूप से अलगाव के ठेकेदारों के पक्ष में खड़ी नजर आती है।
इससे भी कड़वा सत्य यह है कि दिल्ली की मौन स्वीकृति भी उसके साथ होती। अगर ऐसा न होता तो साजिश का शिकार हुई सीमा सुरक्षा बल की टुकड़ी को ही रामबन न छोडऩा पड़ता। और किश्तवाड़ में फसाद के तुरंत बाद विलेज डिफेंस कमेटियों के हथियार वापस लेने की सुगबुगाहट शुरू न होती।
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जम्मू-कश्मीर में भारत विरोधी तत्व कितनी चतुराई से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं, इसके दो प्रमाण बीते एक माह के दौरान सतह पर आए हैं। दोनों ही मामलों में राज्य में तिरंगा थाम कर भारत माता की जय बोलने वालों को मात मिली है। पहली घटना रामबन में सीमा सुरक्षा बल को बदनाम करने की साजिश में अलगाववादियों की कामयाबी के रूप में देखने को मिली थी। अब दूसरी घटना बीते शुक्रवार को ईद की नमाज के बाद किश्तवाड़ में एक समुदाय के लोगों और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाए जाने की है। इन दोनों ही मामलों में पाक-परस्तों के निशाने पर वह लोग हैं जिनके कारण जम्मू -कश्मीर भारत के साथ जुड़ा हुआ है।
हमारा अभिप्राय भारतीय सुरक्षा बलों और राज्य के देशभक्त नागरिकों से है। कौन नहीं जानता कि यह दोनों पक्ष पाकिस्तान-पालित आतंकियों और दूसरे अलगाववादियों को फूटी आंख नहीं सुहाते। इसलिए सरहद के उस पार भी और इस पार भी निरंतर इस बात के प्रयास चलते रहते हैं कि इनके मनोबल पर किसी न किसी रूप में कुठाराघात जारी रहे। मनोबल तोडऩे की साजिशें पाक-परस्तों द्वारा इतनी बारीकी से रची जाती हैं कि उसका हिस्सा बनने वाले आम लोगों को भी संभवत: इसकी भनक न लगती हो। और अनेक बार तो यूं लगने लगता है कि राज्य सरकार भी कहीं न कहीं इन देश-विरोधी तत्वों की ही मौन हिमायती है। किश्तवाड़ की घटना के दिन राज्य के गृहमंत्री किचलू का डाक-बंगले में मौजूद रहना, पुलिस का बहुत देरी से हरकत में आना और सेना की सहायता सब-कुछ लुट-पिट जाने के बाद लिया जाना महज संयोग नहीं हो सकता।
रामबन में सीमा सुरक्षा बल को बदनाम करने के लिए एक ही समुदाय के दो पक्षों की एक धर्मस्थल को लेकर जारी पुरानी रंजिश का सुनियोजित ढंग से इस्तेमाल किया गया। यह तथ्य खुलकर सामने आने में क ई रोज लग गए। जब खुला भी तो नेशनल मीडिया देश के सामने उसकी विस्तृत तस्वीर पेश नहीं कर सका। रामबन में भारत विरोधी तत्वों का मकसद सीमा सुरक्षा बल को कटघरे में खड़ा करना था। उनकी क्रूर और अमानवीय तस्वीर पेश करने के लिए पहले हमेशा की तरह एक धर्मग्रंथ का निरादर होने की अफवाह उड़ाई गई। लोग सीमा सुरक्षा बल पर भड़क उठे।
तनाव के माहौल को संभालने की प्रक्रिया में पहली गोली कहां से चली और किस पर किसने चलाई, इसकी जानकारी सरकारी रिकार्ड में दर्ज है। राज्य पुलिस के एक इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी के बाद सच्चाई की वह तस्वीर सामने आई जो चीख चीख कर बताती है कि इस प्रकरण में सीमा सुरक्षा बल का दामन बिल्कुल साफ था। मगर राजनीतिक कारणों से रामबन से सीमा सुरक्षा बल की उसी टुकड़ी को अन्यत्र भेज दिया गया जिसे बदनाम करने के लिए साजिश रची गई थी। ऐसे में यही कहना पड़ेगा कि इस प्रक्रिया में वे जीत गए जो हमारे सुरक्षा बलों को लगातार गलत रंग में रंग कर दर्शाने को तड़पते रहते हैं।
अब ईद के रोज किश्तवाड़ में दो संप्रदाय आमने सामने खड़े नजर आए। ग्राउंड जीरो से छन छन कर आई जानकारी से साफ है कि पथराव, आगजनी और लूटपाट सुनियोजित थी। ईद की नमाज के पूर्व और बाद में भारत विरोधी और पाक-समर्थक नारे लगाए जाने की बात को कोई नकार नहीं रहा। जब एक समुदाय की देशघाती नारेबाजी करती भीड़ ने निशाना बनाया, उस समय मंत्री किचलू शहर के डाक बंगले में डेरा डाले हुए थे। किचलू की मौजूदगी और फसाद के दौरान उनकी भूमिका पर जम्मू की सड़कों से लेकर संसद तक में सवाल उठना स्वाभाविक था। संदेह के घेरे में आए किचलू का इस्तीफा दर्शाता है कि राज्य सरकार इस मामले में गलत पाले में खड़ी पकड़ी गई है।
रामबन और किश्तवाड़ में घटी घटनाओं की ईमानदारी से पड़ताल हो तो यह भी साफ हो जाएगा कि भारत विरोधी तत्वों ने जो किया वह अचानक या अनायास या किसी तात्कालिक उकसावे में नहीं किया। दरअसल,सारे घटनाचक्र के पीछे देशभक्त लोगों की कमर तोडऩे की सुनियोजित साजिश काम कर रही है। पहले एक समुदाय के लोगों का दूसरे समुदाय के लोगों की दूकानों व मकानों पर हमला बोला। उसके तुरंत बाद यह मांग होने लगी कि इलाके में विलेज डिफेंस कमेटियों को दिए गए शस्त्र वापस ले लिए जाएं।
हमें समझना होगा कि इन कमेटियों में कौन लोग शामिल हैं। जी हां, यह निस्संदेह वे लोग हैं जिन्हें आतंक के चरम के दौर में सरकार ने आतंकियों से आत्मरक्षा के लिए शस्त्र मुहैया कराए थे। आतंकियों से भय किसी अलगाववादी को नहीं था बल्कि उन लोगों को था जो भारत के साथ न केवल दिल से जुड़े हैं बल्कि मौत के साये में रह कर भी वहां तिरंगा थामे हुए हैं। देशविरोधी लोग इन्हें किसी भी कीमत पर निहत्था देखना चाहते हैं। इन्हें निहत्था करने की भूमिका बनाने के लिए किश्तवाड़ में कई प्रकार की अफ वाहें फैलाने का सिलसिला बीते एक पखवाड़े से जारी था। उसकी परिणति ईद के दिन भारतविरोधी नारेबाजी और फसाद के रूप में हुई।
दोनों ही घटनाओं में जो दिख रहा है, सच्चाई उतनी सीधी और सरल नहीं। दोनों का मकसद हमें तो साफ साफ भारत-प्रेमियों को कमजोर करना नजर आता है। रामबन में देशविरोधी तत्व सीमा सुरक्षा बल को बदनाम करके जीत गए और किश्तवाड़ में वे विलेज डिफेंस कमेटियों को बदनाम करके फतेह हासिल करना चाहते हैं। जो भारत से अलगाव के सपने के साथ जी रहे हैं, वे तो वही कर रहे हैं जो उन्हें अपने नापाक मकसद को हासिल करने के लिए करना उचित लगता है। मगर हमारी पीड़ा यह है कि सब कुछ जानते-समझते हुए भी राज्य सरकार कहीं अप्रत्यक्ष तो कहीं प्रत्यक्ष रूप से अलगाव के ठेकेदारों के पक्ष में खड़ी नजर आती है।
इससे भी कड़वा सत्य यह है कि दिल्ली की मौन स्वीकृति भी उसके साथ होती। अगर ऐसा न होता तो साजिश का शिकार हुई सीमा सुरक्षा बल की टुकड़ी को ही रामबन न छोडऩा पड़ता। और किश्तवाड़ में फसाद के तुरंत बाद विलेज डिफेंस कमेटियों के हथियार वापस लेने की सुगबुगाहट शुरू न होती।
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